Javed Akhtar
[A friend, Sourindra sent me the link to a YouTube video of Javed Akhtar reciting his poem Naya Hukumnama. It was captivating. Here is a translation followed by the original in Hindi. Thank you Ruchi and Aditi for giving me the English equivalents for the Hindi words I didn’t know. And of course, thanks Sourindra.
Please read. But you must listen to the original recital. You can go to YouTube and search for “Javed Akhtar + Naya Hukumnama”.]
*
Someone has decreed that from now on
The wind must always declare before it blows
Which way it would like to go.
Also, It must report
At what speed it would flow,
Because right now, storms are not allowed
And our castles of sand,
The towers being built with paper
They must be secure.
And everyone knows
Storms are their old enemies.
Someone has ordained that the waves on seas
Must control themselves and
Be still.
Rising, falling, and then rising again
It’s illegal to create such raucous disorder.
Those are just signs of madness,
Symptoms of rebellion.
No rebellion will be allowed
No madness tolerated.
If waves wish to be,
They must be quiet.
Someone has ordered that from now on
All bouquets must have flowers of the same colour.
And an officer will decide
How bouquets are to be put together.
Indeed, the flowers must be of the same colour,
And how deep or how light the shade should be,
There’ll be an officer to decide.
How can you tell someone
That a bouquet isn’t made with flowers of the same colour
It can never be.
Because a single colour hides countless shades.
Please look at the people
Who tried to create monochrome gardens.
When different colours leapt out of one,
They were so upset, so broken …
How can you tell someone
That the wind and the wave never follow decrees
That a magistrate’s clenched fist, or handcuffs, or jails
Cannot hold a gust of wind,
And when waves are still, the sea gets livid
And later,
Her anger takes the shape of a calamity.
How can you tell someone …
Translated / Bengaluru / 22 November 2016
नया हुकुमनामा
जावेद अख्तर
=========
किसी का हुक्म है सारी हवाएं,
हमेशा चलने से पहले बताएं,
कि इनकी सम्त क्या है.
हवाओं को बताना ये भी होगा,
चलेंगी जब तो क्या रफ्तार होगी,
कि आंधी की इजाज़त अब नहीं है.
हमारी रेत की सब ये फसीलें,
ये कागज़ के महल जो बन रहे हैं,
हिफाज़त इनकी करना है ज़रूरी.
और आंधी है पुरानी इनकी दुश्मन,
ये सभी जानते हैं.
किसी का हुक्म है दरिया की लहरें,
ज़रा ये सरकशी कम कर लें अपनी,
हद में ठहरें.
उभरना, फिर बिखरना, और बिखरकर फिर उभरना,
गलत है उनका ये हंगामा करना.
ये सब है सिर्फ वहशत की अलामत,
बगावत की अलामत.
बगावत तो नहीं बर्दाश्त होगी,
ये वहशत तो नहीं बर्दाश्त होगी.
अगर लहरों को है दरिया में रहना,
तो उनको होगा अब चुपचाप बहना.
किसी का हुक्म है इस गुलिस्तां में,
बस अब एक रंग के ही फूल होंगे,
कुछ अफसर होंगे जो ये तय करेंगे,
गुलिस्तां किस तरह बनना है कल का.
यकीनन फूल यकरंगी तो होंगे,
मगर ये रंग होगा कितना गहरा कितना हल्का,
ये अफसर तय करेंगे.
किसी को कोई ये कैसे बताए,
गुलिस्तां में कहीं भी फूल यकरंगी नहीं होते.
कभी हो ही नहीं सकते.
कि हर एक रंग में छुपकर बहुत से रंग रहते हैं,
जिन्होंने बाग यकरंगी बनाना चाहे थे, उनको ज़रा देखो.
कि जब यकरंग में सौ रंग ज़ाहिर हो गए हैं तो,
वो अब कितने परेशां हैं, वो कितने तंग रहते हैं.
किसी को ये कोई कैसे बताए,
हवाएं और लहरें कब किसी का हुक्म सुनती हैं.
हवाएं, हाकिमों की मुट्ठियों में, हथकड़ी में, कैदखानों में नहीं रुकतीं.
ये लहरें रोकी जाती हैं, तो दरिया कितना भी हो पुरसुकून, बेताब होता है.
और इस बेताबी का अगला कदम, सैलाब होता है.
किसी को कोई ये कैसे बताए.
@javed akhtar poetry
Please read. But you must listen to the original recital. You can go to YouTube and search for “Javed Akhtar + Naya Hukumnama”.]
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Someone has decreed that from now on
The wind must always declare before it blows
Which way it would like to go.
Also, It must report
At what speed it would flow,
Because right now, storms are not allowed
And our castles of sand,
The towers being built with paper
They must be secure.
And everyone knows
Storms are their old enemies.
Someone has ordained that the waves on seas
Must control themselves and
Be still.
Rising, falling, and then rising again
It’s illegal to create such raucous disorder.
Those are just signs of madness,
Symptoms of rebellion.
No rebellion will be allowed
No madness tolerated.
If waves wish to be,
They must be quiet.
Someone has ordered that from now on
All bouquets must have flowers of the same colour.
And an officer will decide
How bouquets are to be put together.
Indeed, the flowers must be of the same colour,
And how deep or how light the shade should be,
There’ll be an officer to decide.
How can you tell someone
That a bouquet isn’t made with flowers of the same colour
It can never be.
Because a single colour hides countless shades.
Please look at the people
Who tried to create monochrome gardens.
When different colours leapt out of one,
They were so upset, so broken …
How can you tell someone
That the wind and the wave never follow decrees
That a magistrate’s clenched fist, or handcuffs, or jails
Cannot hold a gust of wind,
And when waves are still, the sea gets livid
And later,
Her anger takes the shape of a calamity.
How can you tell someone …
Translated / Bengaluru / 22 November 2016
नया हुकुमनामा
जावेद अख्तर
=========
किसी का हुक्म है सारी हवाएं,
हमेशा चलने से पहले बताएं,
कि इनकी सम्त क्या है.
हवाओं को बताना ये भी होगा,
चलेंगी जब तो क्या रफ्तार होगी,
कि आंधी की इजाज़त अब नहीं है.
हमारी रेत की सब ये फसीलें,
ये कागज़ के महल जो बन रहे हैं,
हिफाज़त इनकी करना है ज़रूरी.
और आंधी है पुरानी इनकी दुश्मन,
ये सभी जानते हैं.
किसी का हुक्म है दरिया की लहरें,
ज़रा ये सरकशी कम कर लें अपनी,
हद में ठहरें.
उभरना, फिर बिखरना, और बिखरकर फिर उभरना,
गलत है उनका ये हंगामा करना.
ये सब है सिर्फ वहशत की अलामत,
बगावत की अलामत.
बगावत तो नहीं बर्दाश्त होगी,
ये वहशत तो नहीं बर्दाश्त होगी.
अगर लहरों को है दरिया में रहना,
तो उनको होगा अब चुपचाप बहना.
किसी का हुक्म है इस गुलिस्तां में,
बस अब एक रंग के ही फूल होंगे,
कुछ अफसर होंगे जो ये तय करेंगे,
गुलिस्तां किस तरह बनना है कल का.
यकीनन फूल यकरंगी तो होंगे,
मगर ये रंग होगा कितना गहरा कितना हल्का,
ये अफसर तय करेंगे.
किसी को कोई ये कैसे बताए,
गुलिस्तां में कहीं भी फूल यकरंगी नहीं होते.
कभी हो ही नहीं सकते.
कि हर एक रंग में छुपकर बहुत से रंग रहते हैं,
जिन्होंने बाग यकरंगी बनाना चाहे थे, उनको ज़रा देखो.
कि जब यकरंग में सौ रंग ज़ाहिर हो गए हैं तो,
वो अब कितने परेशां हैं, वो कितने तंग रहते हैं.
किसी को ये कोई कैसे बताए,
हवाएं और लहरें कब किसी का हुक्म सुनती हैं.
हवाएं, हाकिमों की मुट्ठियों में, हथकड़ी में, कैदखानों में नहीं रुकतीं.
ये लहरें रोकी जाती हैं, तो दरिया कितना भी हो पुरसुकून, बेताब होता है.
और इस बेताबी का अगला कदम, सैलाब होता है.
किसी को कोई ये कैसे बताए.
@javed akhtar poetry
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